Wednesday, September 15, 2021

Class-10 subject-Hindi Chapter-4 आत्मकथ्य

 EVENTS CONVENT H.SCHOOL

15/09/2021          CLASS-10     SESSION2021-22
subject : HINDI
(CHAPTER-4)
आत्मकथ्य
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प्रश्न 1.कवि आत्मकथा लिखने से क्यों बचना चाहता है?
उत्तर-

कवि बादलों को क्रांति का सूत्रधार मानता है। वह उससे पौरुष दिखाने की कामना करता है। इसलिए वह उसे गरजने-बरसने के लिए बुलाता है, न कि फुहार छोड़ने, रिमझिम बरसने या केवल बरसने के लिए। कवि तापों और दुखों को दूर करने के लिए क्रांतिकारी शक्ति की अपेक्षा करता है।

प्रश्न 2.आत्मकथा सुनाने के संदर्भ में अभी समय भी नहीं’ कवि ऐसा क्यों कहता है?
उत्तर-

‘अभी समय भी नहीं’ कवि ने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि कवि को लगता है कि उसने जीवन में अब तक कोई ऐसी उपलब्धि नहीं हासिल की है जो दूसरों को बताने योग्य हो तथा उसकी दुख और पीड़ा इस समय शांत है अर्थात् वह उन्हें किसी सीमा तक भूल गया है और इस समय उन्हें याद करके दुखी नहीं होना चाहता है।

प्रश्न 3.स्मृति को ‘पाथेय’ बनाने से कवि का क्या आशय है?
उत्तर-

कविता में बादल तीन अर्थों की ओर संकेत करता है

  1. जल बरसाने वाली शक्ति के रूप में
  2. उत्साह और संघर्ष के भाव भरने वाले कवि के रूप में
  3.  पीड़ाओं का ताप हरने वाली सुखकारी शक्ति के रूप में।

प्रश्न 4.भाव स्पष्ट कीजिए
(क) मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया।
आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।
(ख) जिसके अरुण कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।
अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।

उत्तर-
(क) उक्त पंक्तियों का भाव यह है कि कवि भी अन्य लोगों की भाँति सुखमय जीवन बिताना चाहता था पर परिस्थिति वश सुखमय जीवन की यह अभिलाषा उसकी इच्छा बनकर ही गई। सुख पाने का उसे अवसर भी मिला पर वह हाथ आते-आते रह गया अर्थात् उसकी पत्नी की मृत्यु हो जाने से वह सुखी जीवन का आनंद अधिक दिनों तक न पा सका।
(ख) कवि की प्रेयसी अत्यंत सुंदर थी। उसके कपोल इतने लाल, सुंदर और मनोहर थे कि प्रात:कालीन उषा भी अपना सौंदर्य बढ़ाने के लिए लालिमा इन्हीं कपोलों से लिया करती थी। अर्थात् उसकी पत्नी के कपोल उषा से भी बढ़कर सौंदर्यमयी थे।

प्रश्न 5.उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की’- कथन के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर-

आत्मकथ्य कविता की भाषागत विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(i) संस्कृत शब्दावली की बहुलता-‘आत्मकथ्य’ कविता में संस्कृतनिष्ठ भाषा का प्रयोग हुआ है; जैसे

  • इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्य जीवन-इतिहास।
  • उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की।

(ii) प्रतीकात्मकता-‘आत्मकथ्य’ कविता में प्रतीकात्मक भाषा का खूब प्रयोग हुआ है; जैसे

  • मधुप गुन-गुनाकर कह जाता कौन कहानी यह अपनी।
  • तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे-यह गागर रीती।
  • उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की।
  • सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की।

(iii) बिंबात्मकता-‘आत्मकथ्य’ कविता में बिंबों के प्रयोग से दृश्य साकार हो उठे हैं; जैसे

  • मधुप गुन-गुनाकर कह जाता कौन कहानी यह अपनी।।
  • मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी।
  • अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्यथा।

(iv) अलंकार-आत्मकथ्य कविता में अनुप्रास और मानवीकरण अलंकार की छटा दर्शनीय है
अनुप्रास –

  • कह जाता कौन कहानी यह अपनी।
  • तब भी कहते हो कह डालें।

मानवीकरण –

  • मधुप गुन-गुनाकर कह जाता कौन कहानी यह अपनी।
  • थकी सोई है मेरी मौन व्यथा।

(v) रोयता एवं संगीतात्मकता-आत्मकथ्य कविता की प्रत्येक पंक्ति के अंत में दीर्घ स्वर एवं स्वर मैत्री होने से योग्यता । एवं संगीतात्मकता का गुण है; जैसे
तब भी कहते हो–कह डालें, दुर्बलता अपनी बीती। तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे यह गागर रीती।

प्रश्न 6.कवि ने जो सुख का स्वप्न देखा था उसे कविता में किस रूप में अभिव्यक्त किया है?
उत्तर-

कवि ने जो सुख का स्वप्न देखा था, कविता में उसकी अभिव्यक्ति इस प्रकार है-कवि की पत्नी अत्यंत सुंदर थी। उसका रूप-सौंदर्य प्रात:कालीन उषा से भी बढ़कर था। कवि को उसके रूप-सौंदर्य को सान्निध्य अल्पकाल के लिए ही मिल सका। उसकी पत्नी सुख की अल्पकालिक मुसकान बिखेरकर उसके जीवन से दूर हो गई। इससे कवि की चिरकाल तक सुख पाने की कामना अपूर्ण रह गई । कवि ने इस व्यथा को दबाना तो चाहा पर कविता में वह प्रकट हो ही गई

  • जिसके अरुण-कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।
    अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में ।।
  • उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 7.इस कविता के माध्यम से प्रसाद जी के व्यक्तित्व की जो झलक मिलती है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-

इस कविता के माध्यम से प्रसाद जी के व्यक्तित्व की निम्नलिखित विशेषताओं की झलक मिलती है

  • विनम्रता : प्रसाद जी छायावाद के चार स्तंभों में प्रमुख स्थान रखते हैं, फिर भी वे अत्यंत विनम्र थे। वे अपने जीवन को उपलब्धिहीन मानकर कहते थे-छोटे-से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ।
  • सरल स्वभाव : प्रसाद जी सरल स्वभाव वाले व्यक्ति थे। वे अपनी सरलता की हँसी नहीं उड़ाना चाहते थे–यह विडंबना! अरे सरलते तेरी हँसी उड़ाऊँ मैं।
  • यथार्थता : प्रसाद जी यथार्थवादी थे। वे यथार्थ को स्वीकार कर कहते थे—तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे-यह गागर रीती।

प्रश्न 8.आप किन व्यक्तियों की आत्मकथा पढ़ना चाहेंगे और क्यों?
उत्तर-

मैं उन व्यक्तियों की आत्मकथा पढ़ना चाहूँगा, जिन्होंने अपनी मातृ भूमि और देश के लिए सुखों को ठोकर मार दिया और अपने देश के आन-बान और शान के लिए ठोकरें खाईं, संघर्ष किया और आवश्यकता पड़ने पर मौत को भी गले लगा लिया। मैं राणा प्रताप, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, सुभाष चंद्र बोस जैसों की आत्मकथा पढ़ना चाहूँगा।